ये तो हम सभी जानते हैं कि महाभारत का युद्ध अधर्म पर धर्म की जीत के लिए लड़ा गया था और इस युद्ध में कर्ण, अर्जुन, भीष्म, दुर्योधन के साथ अश्वथामा जैसे एक से बढ़कर एक बलशाली इस महाभारत के युद्ध में शामिल थे। परन्तु एक नाम ऐसा भी था इस युद्ध में जो सिर्फ अपने तीन बाणों से ही महाभारत में शामिल समस्त सैनिकों के साथ सभी महाबलियों को मार कर महाभारत का युद्ध 1 पहर में ही समाप्त कर सकता था और वो नाम था बर्बरीक।
कौन थे बर्बरीक ?
बर्बरीक एक ऐसा नाम जिसकी शक्तियों से स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी चिंतित हो गए और उन्हें अपनी लीला दिखाकर बर्बरीक को इस युद्ध में शामिल होने से रोकना पड़ा।
बर्बरीक पांडवो में दूसरे श्रेष्ठ भीम व् हिडिम्बा के पौत्र थे। भीम के पुत्र घटोत्कच और बहु मौरवी (अहिलावती) के 3 पुत्र अंजनपर्व, मेघवर्ण और बर्बरीक थे।
जब बर्बरीक पैदा हुए तो उनके बाल घुंघराले (बर्बराकार) थे जिस कारण घटोत्कच ने पुत्र का नाम बर्बरीक रखा। बर्बरीक को भगवान शिव और देवी चंडी से अत्यंत दुर्लभ बल प्राप्त था। एक ऐसा वरदान प्राप्त था कि वो अपने तीन बाण से किसी को भी मौत के घात उतार सकते थे। इन्ही बाणों की शक्तियों के बारे में सोचकर भगवान श्रीकृष्ण जी बर्बरीक को महाभारत के युद्ध से दूर रखना चाहते थे। अगर वो जीवित रहते तो महाभारत के युद्ध में कभी पांडवो को जीत और अधर्म पर धर्म कि जीत नहीं मिल पाती क्यूंकि बर्बरीक ने भगवान शिव से और चंडी से वरदान प्राप्त करते समय उन्हें ये वचन दिया था कि वो कभी युद्ध में मजबूत पक्ष का साथ नहीं देंगे, जो कमजोर पक्ष होगा उसी का वो साथ देंगे उन्ही कि तरफ से लड़ेंगे।
बर्बरीक कि शक्तियों से भगवान श्रीकृष्ण क्यों हो गए चिंतित ?
भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु-दक्षिणा में क्यों माँगा बर्बरीक का कटा हुआ सर ??
भगवान श्रीकृष्ण जी बर्बरीक कि शक्तियों से चिंतित होकर एक युक्ति सोचते हैं और उनसे कहते हैं कि “वत्स तुमने युद्ध में कमजोर पक्ष की तरफ से लड़ने का वचन दिया है न तो इसका मतलब कि कल को अगर तुम्हारे दादाश्री युधिष्ठिर, अर्जुन समेत पांडव कमजोर दिखे युद्ध में तुम पांडवो कि तरफ से कौरवों पर और दुर्योधन पर वार करोगे ?”
तो वासुदेव श्रीकृष्ण के इस कथन पर बर्बरीक ने कहा कि “जी हाँ गुरुदेव, मैं अपने वचन अनुसार ऐसा ही करूँग।”
श्रीकृष्ण जी ने फिर पूछा कि “अगर युद्ध में पांडव शक्तिशाली दिखे तो फिर तुम कौरवों की ओर से दुर्योधन की ओर से अपने दादाश्री से ही युद्ध करोगे ?”
तो बर्बरीक ने फिर कहा कि “जी हाँ गुरुदेव, मैं अपने वचन अनुसार ऐसा ही करूँग।”
इस पर वासुदेव श्रीकृष्ण जी बर्बरीक से ये बोलते हैं कि “वत्स फिर तो ये युद्ध ऐसे ही चलता रहेगा, कौरव कमजोर दिखेंगे तो तुम कौरव की तरफ से लड़ोगे और पांडव कमजोर दिखे तो फिर तुम पांडव की तरफ से लड़ोगे तो ऐसे में तो ये युद्ध ऐसे ही चलता रहेगा”
तो फिर बर्बरीक श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि “गुरुदेव हाँ ये तो आप सही कह रहे, फिर इसका क्या उपाय है ?”
श्रीकृष्ण जी बोलते हैं कि “वत्स बर्बरीक तुम इस युद्ध में भाग ही मत लो”…
बर्बरीक बोलते हैं कि “गुरुदेव ऐसा संभव ही नहीं है मैंने सुना है कि महाभारत जैसा युद्ध आज तक कभी इतिहास में कभी न तो लड़ा गया है और न ही कभी भविष्य में लड़ा जाएगा, और मुझे वरदान भी इसीलिए मिला है कि मैं कमजोर कि मदद कर पाऊं इस युद्ध में अगर मैं युद्द में भाग नहीं लिया तो भविष्य में लोग मुझे कायर कहकर पुकारेंगे जो मैं कदाचित नहीं चाहता।”
इस पर भगवान श्रीकृष्ण जी बोलते हैं कि “वत्स बर्बरीक फिर तो तुम्हे गुरु-दक्षिणा देनी होगी और गुरु-दक्षिणा में तुम्हे अपना शीश मुझे दान करना होगा, तो क्या तुम कर पाओगे ?”
कैसे बने बर्बरीक खाटू श्याम ??
बर्बरीक ने अपना शीश भगवान श्रीकृष्ण जी को दान करने से पहले बोला कि “हे गुरुदेव मैं ये युद्ध अपनी आँखों से देखना चाहता हूँ, क्या मैं अपना शीश दान कर के ये युद्ध अपनी आँखों से देख पाऊंगा?”
भगवान श्रीकृष्ण बर्बरीक से कहते हैं कि “वत्स मैं तुम्हे ये आशीर्वचन देता हूँ कि तुम न सिर्फ ये युद्ध अपनी आँखों से ख़त्म होते हुवे देखोगे अधर्म पर धर्म कि जीत होते हुए देखोगे बल्कि भविष्य में कलयुग में तुम मेरे नाम से अर्थात ‘श्याम’ कहकर पुकारे जाओगे।” तो इस तरह से घटोत्कच और मौरवी पुत्र बर्बरीक ही आगे चलकर खाटू श्याम बनें।
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